उत्तराखंडी पहाड़ी नृत्य गीत
शीर्षक: उत्तराखंडी पहाड़ी नृत्य गीत
(मुखड़ा) हे उत्तराखंड की धरती, हे पहाड़ों की धरा, नचने वालों की धरती, यहाँ सब है प्यारा।
(अंतरा 1) छानी की चांदनी, मन मोह ले ले, सावन की बूंदें, रूप संग ले ले। धुप में खिली, मित्ती के फूल, जैसे उत्तराखंड की सजी शौभाग्य भूमि।
(मुखड़ा) हे उत्तराखंड की धरती, हे पहाड़ों की धरा, नचने वालों की धरती, यहाँ सब है प्यारा।
(अंतरा 2) बादलों की घेरा, सोहनी धूप, छैला मेरो डाना, मस्ती भरी रूप। धुन की ताली, पहाड़ी नृत्य, हर एक पल में बसी है यहाँ प्यारी खुशियाँ।
(मुखड़ा) हे उत्तराखंड की धरती, हे पहाड़ों की धरा, नचने वालों की धरती, यहाँ सब है प्यारा।
(अंतरा 3) खेलती है झरना, नदियों की लहर, धरती के गाने, हर ओर है फेर। पहाड़ी नृत्य में, झूमे जाए हम, खुशियों की बस्ती में, नचें ख़ुशियों का संगम।
(मुखड़ा) हे उत्तराखंड की धरती, हे पहाड़ों की धरा, नचने वालों की धरती, यहाँ सब है प्यारा।
यह गीत उत्तराखंड के पहाड़ों के सुंदरता, संस्कृति, और नृत्य का महत्वपूर्ण प्रतिबिम्ब है। इसमें पहाड़ी नृत्य की ऊर्जा, खुशी, और उत्साह को व्यक्त किया गया है।
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